पता नही क्या अचानक से ढूंढते ढूंढते अपने पुनर्जन्म में चला गया। वहाँ गया तो देखा कि आज इस जन्म में भी कुछ वैसा ही बिखरा पड़ा है , जिस बिखरे को कभी लाख कोशिशों के बाद भी सही ना कर पाने पर जितना बन पड़ा उतना सहेज कर समेट कर वक्त की धूल फांकती चादर के सहारे छोड़कर आगे इस जन्म में सब बढ़ आए थे।
ना जाने कितना कुछ अभी जिन्दा है हममें, ना जाने अभी और कितनी मौतें बची हैं। एक मुट्ठी समय! शायद इतना ही तो है हम सब के पास फिर भी उंगलियों के बीच रीसते इस एक एक पल में हमे अपने , मेरे,लिए कितना कुछ करना है ना? क्या हमारा , हमारे लिए किया गया सारा करा धरा हमारा होगा अगर वो वक्त , वो मुट्ठी भर वक्त, हमारे लोगों, हमारे प्यारे लोगों के साथ ना गुजरे।
मुझे लगता है कि एक दिन के लिए दुनिया में हर इंसान की सारी इच्छाएं पूरी हो जानी चाहिए। वो जो चाहता है, मांगता है, जिसके पीछे सबको भूलकर भाग रहा है उसे वो सब मिल जाए फिर दुनिया का हर इंसान फुर्सत भर बैठ यह सोच पाए कि अब क्या? वो लोग कहाँ है? अरे वो अपने जिनको हम इन सब की चाह में बहुत पहले छोड़ आए। क्या तब, जब सबके पास वो सब कुछ होगा जो वो चाहते हैं तो क्या तब भी कुछ लोगों को लोगों की याद आएगी ? शायद सबको तो नहीं! पर कुछ मुट्ठी भर लोग जरूर होंगे जो अपनों को ढूंढेंगे। मुझे मन है कि इन मुट्ठी भर लोगों की अलग दुनिया होनी चाहिए