मैं जानता हूँ…
मेरी समस्याओ का कोई समाधान नही है…
और जिन समस्याओ का कोई समाधान न हो उन्हें सत्य मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए…
फिर भी ये पीड़ाएँ मैं उकेरता रहता हूँ कविताओं में…
इसलिए नही कि इन कविताओं को पढ़कर तुम्हारे अन्तःकरण में मेरे लिए निश्छल प्रेम की तरंगें हिलोरें लेने लगे…
इसलिए भी नही कि जब तुम इसे पढ़ो तो तुम्हे अफसोस हो खुद पर कि जी लिए होते इस प्रेम अनुरागी के साथ कुछ पल निर्झर बहते प्रेम की पावन गंगा में…
इसलिए भी नही लिखता कि कविताओं की आड़ में छिपकर…
मैं इस सत्य की मुनादी करवाना चाहता हूं कि मैं एक प्रेम आखेटक के धनुष से निकले तूणीर से व्यथित होकर मूर्च्छित पड़ा हुआ तुम्हे आवाज दे रहा हूँ कि आओ मेरे जख्मो पर संजीवनी लगाकर मुझे नया जीवन प्रदान करो…
मैं तो यह सोचकर कविताओं को ढाल बनाकर गुनगुनाता हूँ…
कि मेरे दिल की इस बंजर भूमि को कृषियोग्य भूमि में बदलने वाला कोई तो होगा…
कोई तो होगा जो मेरी जिंदगी के रेगिस्तान में प्रेम से भरी रिमझिम बारिश की बूंदों से मेरे ह्रदय की प्यास को शान्त करेगा…
कोई तो होगा जो मेरी उदासियों की कीमत पर अपने होठों की मुस्कुराहट को दांव पर लगाकर ये कहेगा कि अब हम दोनों साथ मे रहकर तमाम अधूरे सपनो को साकार करते हुए प्रेम के पथ पर आगे बढ़ेगे…
हाँ प्रेम के बचे रहने के लिए ये जरूरी भी है कि अनकहे प्यार को उसकी आँखों से पहचाना जाए…
और समय समय पर प्रेमवर्षा होती रहे उन लड़कों पर जो ढूंढते है अपनी प्रेमिका की आंखों में अपनी मां सा निश्छल प्रेम…
जिससे प्रेम को अमरत्व प्राप्त हो सके….